बच्चों को सिखाने के लिये अनुशासन का आदर्श प्रस्तुत करें, महापुरुषों की गाथाएं सुनाएं
शिवपुरी। बच्चों की शरारतों और छोटी-छोटी गलतियों पर अक्सर माता-पिता उनके साथ मारपीट कर देते है। अनेकों बार तो यह मारपीट गंभीर क्रूरतापूर्ण हो जाती है। मारपीट के अलावा कई बार सजा के तौर पर बच्चों को भूखा सुला दिया जाता है। अंधेरे कमरे में बंद कर दिया जाता है। बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार गैर कानूनी है। किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और सुरक्षा) कानून में इस प्रकार के आचरण को बच्चों के साथ क्रूरता माना गया है।
यह बात बाल संरक्षण योजना के तहत वन स्टॉप सेंटर में आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला में बाल संरक्षण अधिकारी राघवेन्द्र शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि माता-पिता, परिजन, शिक्षक कोई भी बच्चों को शारिरिक या मानसिक यातना नहीं दे सकता, भले ही वह उसे अनुशासित करने के लिये ही क्यों न हो। बच्चों पर हाथ उठाना कानून में गंभीर अपराध माना गया है, इसके लिये 3 वर्ष तक की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। कानून में बच्चे को शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुंचाने वाले प्रत्येक व्यवहार को बाल देखभाल कानून में निषेध किया गया है। कई माता-पिता तर्क देते है कि बच्चों को कईबार समझाया पर वे सुनते ही नहीं,इसलिए गाल पर एक-दो थप्पी जड़ दीं। उसने ऐसा किया,उसने वैसा किया,इसलिए सजा देना पड़ी। बच्चे किसी ओर का सामान उठा लाए थे, इसलिए भूखे रहने की सजा देना पड़ी। पर अब ये तर्क भी बच्चों को सजा देने का आधार नहीं बन सकते। कानून में बच्चों को शारिरिक दंड के साथ ही भावनात्मक पीड़ा देने पर भी बंदिश लगाई गई है। अच्छा होता तुम पैदा ही नहीं हुए होते, माता-पिता बच्चों से ऐसा नहीं कह सकते। इस तरह की बातें करना बच्चों के साथ मौखिक दुव्र्यवहार माना जाएगा। यह कहना बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है। भाई बहनों के बीच पढ़ाई या किसी अन्य बात को लेकर तुलना करना कि तुम तो गधे हो ऐसा बोलना भी कानून द्वारा वर्जित किया गया है।
कानून का आशय माता-पिता के अधिकार छीनना नहीं
बाल देखभाल और सुरक्षा कानून के इस प्रावधान का आशय माता-पिता के अधिकार छीनना नहीं,बल्कि बच्चों के अधिकारों का संरक्षण करना है। यदि अज्ञानता के चलते बच्चे कोई गलती करते है,तो उसे गलती का एहसास कराने के लिए समझाइस दें। अनुशासन सिखाने के लिए आदर्श प्रस्तुत करें, महापुरुषों की गाथाएं सुनाएं। शारीरिक एवं मानसिक दंड (यातनाओं) का बच्चों के मस्तिष्क पर प्रतिकूल असर होता है। बाल मनोविज्ञान से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह मानते हैं कि बच्चों को मार-पीट या डांटने के बजाए प्यार से समझाना चाहिए। हमारे समाज में अनुशासन को डांटने और मार-पीट करने तक सीमित कर दिया गया है। मार-पीट करने या डांटने के बजाए बच्चों को सिखाने के लिये स्वयं अनुशासन का आदर्श प्रस्तुत करें तथा महापुरुषों की गाथाएं सुनाएं,जिससे वह अनुशासन के महत्व को समझेंगे और वह स्वयं ही अनुशासित रहना सीखेंगे। प्रशिक्षण कार्यक्रम में सेवानिवृत्त विकासखंड महिला सशक्तिकरण अधिकारी ओमवती भार्गव,वन स्टॉप सेंटर की प्रशासक कंचन गोड़,आंगनबाड़ी प्रशिक्षण केंद्र की सहायक निर्देशिका कमलेश शर्मा,पर्यवेक्षक अंगूरी बाथम आदि उपस्थित रहे।

