अब जौरा और सिवनी मालवा उपचुनाव तक टल गया पीसीसी चीफ का चुनाव
अशोक कोचेटा
पिछले एक साल से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव निरंतर टलता जा रहा है और टलने का सबसे बड़ा कारण यह है कि प्रदेशाध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। जिन्होंने प्रदेशाध्यक्ष बनने की इच्छा खुले रूप में व्यक्त भी कर दी है और उनके समर्थकों ने भी इस इच्छा को हवा देने का काम किया है। लेकिन दो पावर सेंटर बनने की आशंका के कारण मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष न बनाए जाने पर अड़े हुए हैं। इसी कारण किसी न किसी बहाने से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव टलता रहा है। अब पीसीसी चीफ का चुनाव लगता है कि जौरा और सिवनी मालवा उपचुनाव तक टल गया है। फिलहाल मुख्यमंत्री कमलनाथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी को संभाल रहे हैं। उनके नेतृत्व में कांगे्रस झाबुआ में भाजपा से सीट छीनकर कांतिलाल भूरिया को चुनाव जिता चुकी है। श्री भूरिया भी अध्यक्ष पद के एक प्रबल दावेदान माने जा रहे हैं।
कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक समन्वय समिति बनाई है। जिसमें मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं। यह समिति सत्ता और संगठन में समन्वय के लिए गठित की गई है। इस कारण भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव टलता नजर आ रहा है। क्योंकि इस समिति के रहते फुलटाईम अध्यक्ष की अभी इतनी जल्दी भी नहीं है। प्रदेश में एक-दो माह में ही जौरा और सिवनी मालवा के उप चुनाव होने जा रहे हैं। जौरा में कांग्रेस विधायक बनवारीलाल शर्मा और आगर मालवा में मनोहर ऊंटवाल के निधन के कारण खाली हुई विधानसभा सीटों के चुनाव होंगे। कांग्रेस हर हाल में इन दो सीटों को जीतकर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की कोशिश करेगी। 2018 में जौरा सीट जहां कांग्रेस ने जीती थी। वहीं सिवनी मालवा सीट भाजपा के खाते में गई थी। लेकिन सिवनी मालवा में भाजपा की जीत का अंतर लगभग ढ़ाई हजार मतों का था और जिस जौरा सीट पर कांग्रेस चुनाव जीती थी। वहां भाजपा मुकाबले में तीसरे स्थान पर रही थी और दूसरे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार था। कांग्रेस हर हाल में इन दोनों सीटों को जीतना चाहेगी और इसलिए वह नया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर कोई रिस्क लेती हुई नजर नहीं आ रही है। यह बात अलग है कि सिंधिया समर्थक लगातार सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं और दबाव भी बना रहे हैं। सिंधिया समर्थक मंत्री खुले रूप में उनके नाम की पैरवी कर रहे हैं। लेकिन अध्यक्ष पद के लिए सिंधिया विरोधी खैमे की ओर से कई अन्य महत्वपूर्ण नाम चर्चा में हैं। झाबुआ उपचुनाव जीतकर विधायक बने कांतिलाल भूरिया भी अध्यक्ष पद की दौड़ में हैं। वह पहले भी कांगे्रस अध्यक्ष रह चुके हैं और आदिवासी होना उनकी सबसे बड़ी ताकत है। विधानसभा चुनाव में प्रदेश में आदिवासियों का बहुमत कांग्रेस के पक्ष में रहा था। इस कारण कांग्रेस में आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष को प्रोजेक्ट करने का विचार भी तेजी से चल रहा है। आदिवासी विधायक विसाहूलाल सिंह भी अपनी दावेदारी ठोक चुके हैं। अध्यक्ष पद के अन्य दावेदारों में मंत्री जीतू पटवारी और बाला बच्चन, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव और अजय सिंह भी शामिल हैं। सूत्र बताते हैं कि सिंधिया को अध्यक्ष पद की दौड़ से दूर करने के लिए राज्यसभा में भी भेजा जा सकता है। मार्च माह में प्रदेश में राज्यसभा की दो खाली सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं। इनमें से कांग्रेस के विधानसभा में वर्तमान गणित को देखते हुए दोनों सीटों पर विजय की उम्मीद है। ऐसे में एक पद के लिए तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का नाम तय माना जा रहा है और दूसरी सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की घोषणा हो सकती है।
नगरीय निकाय चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में होंगे
बीते दिनों केबिनेट मंत्री जीतू पटवारी ने कहा था कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। आगामी दिनों में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव को कांग्रेस पार्टी कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ेगी। वहीं केबिनेट मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और बाला बच्चन ने भी बयान दिया था कि निकाय चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इससे लगता है कि उपचुनाव और निकाय चुनाव से पहले पीसीसी अध्यक्ष पद का चुनाव संभव नहीं है।