आदि शंकराचार्य के 1400 वर्ष बाद आचार्य विद्यासागर जी पहले संत जिन्होंने देश और समाज को दिया मार्गदर्शन

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आज उनकी प्रेरणा से इंडिया भारत बना, समाधिस्थ आचार्य विद्यासागर जी को समूचे शहर ने दी अपनी भावांजलि


शिवपुरी (अशोक कोचेटा)।
 पृथ्वी को 1400 साल लगे तपस्या में तब महान दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य के बाद आचार्य विद्यासागर जी पहले ऐसे संत हुए जिन्होंने समाज और देश को अपना मार्गदर्शन दिया। वह जैन संत ही नहीं, बल्कि जन-जन के संत थे। आचार्य तरुण सागर जी की कल्पना थी कि आज भगवान महावीर को मंदिरों से मुक्त कर उनकी प्रतिमा को चौराहे पर खड़ा किया जाए ताकि वह समूचे समाज और मानवता को अहिंसा और सत्य का संदेश दे सकें। इस संदर्भ में आचार्य विद्यासागर जी चौराहे पर खड़े ऐसे संत हैं जिनके मार्गदर्शन पर आज देश आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-शिखर सम्मेलन में इंडिया के स्थान पर भारत शब्द का इस्तेमाल किया। वह सांस्कृतिक विरासत आचार्य विद्यासागर जी की ही देन है। उक्त उद्गार छत्री जैन मंदिर पर आचार्य विद्यासागर जी की समाधि के अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में विभिन्न वक्ताओं ने व्यक्त किए। पूरे देश में आचार्य विद्यासागर जी के सम्मान में विनयांजलि सभा आयोजित हुईं। इसी क्रम में कल लगभग पूरे शहर ने उन्हें अपनी भावांजलि प्रस्तुत की। जिसमें विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु, प्रशासनिक अधिकारी, राजनेता, समाजसेवी और बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
विनयांजलि सभा में कलेक्टर रविंद्र चौधरी ने अपने भावपूरित उद्बोधन में कहा कि मुझे आचार्यश्री के दर्शन और सत्संग करने का सानिध्य प्राप्त हुआ है। उन्होंने याद करते हुए कहा कि जब वह सागर में पदस्थ थे तो आचार्यश्री की प्रेरणा से एक अरबपति परिवार ने दिन में विवाह समारोह आयोजित किया था। वह देश के सबसे बड़े संत थे और मानवता उनके जीवन की आदर्श थी। एसपी रघुवंश सिंह भदौरिया ने भाव विभोर होकर आचार्यश्री के सम्मान में सुमधुर स्वर में भजन मन क्यों भटके, द्वारे-द्वारे... का गायन किया। उन्होंने कहा कि आचार्य विद्यासागर जी किसी एक समाज के नहीं थे। जिला न्यायाधीश श्रीमती वंदना जैन ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री की खास बात यह है कि उन्होंने जैन और अजैनों को समान रूप से प्रभावित किया है। उन्होंने प्रतिपादित किया है कि जैन धर्म मानवता से परिपूरित है। गुरुदेव के कारण आज मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा ने कहा कि हर युग में संतुलन स्थापित करने के लिए ईश्वरीय शक्ति का जन्म होता है और आचार्यश्री तो साक्षात ईश्वर थे। उन्हें सच्ची भावांजलि यही होगी कि हम उनके आदर्शों का अनुकरण करें। समाजसेवी संस्था मंगलम की ओर से उद्गार व्यक्त करते हुए डॉ. अजय खेमरिया ने तार्किक ढंग से स्पष्ट किया कि आचार्य विद्यासागर जी भारत बोध के सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि संत हैं। उन्हें महज जैन संत के रूप में देखना भारत के स्वाभिमान और संस्कृति को कमतर करने की कोशिश है। आज जैन धर्मावलंबियों के सबसे बड़ी चुनौती है कि वह आचार्यश्री को जैन मंदिर के परकोटे से बाहर निकालकर आदि शंकराचार्य की तरह भारत तथा संपूर्ण मानवता के पथ प्रदर्शक के रूप में स्थापित करने की उदारता और पराक्रम दोनों दिखाएं। श्वेताम्बर जैन समाज की ओर से पत्रकार अशोक कोचेटा ने कहा कि आचार्यश्री के व्यक्तित्व में भगवान राम के सदृश्य संयम और मर्यादा, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसी निश्छलता, सहजता, सरलता और भोलापन, कबीर जैसी ताजगी और गागर में सागर भरने की सामथ्र्य, भगवान बुद्ध जैसी करूणा और वात्सल्यता तथा भगवान महावीर जैसा ज्ञान का सागर दृष्टिगोचर होता है। पृथ्वी जब हजारों साल तपस्या करती है तब आचार्य विद्यासागर जी जैसे महापुरुषों का अवतरण होता है। प्रायवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक ठाकुर ने कहा कि आचार्यश्री के अवसान से पूरा विश्व वीरान हो गया है। पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी ने बड़ी स्पष्टता से कहा कि त्याग और तपस्या तथा संतत्व की झलक जैन संतों में देखने को मिलती है। आचार्य विद्यासागर जी ईश्वर के अवतार थे। बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा पाण्डेय ने कहा कि आचार्यश्री कहीं गए नहीं हैं वह अदृश्य होकर देखना चाहते हैं कि जो उन्होंने सिखाया है उसका हम कितना अनुकरण करते हैं। पूर्व विधायक हरिबल्लभ शुक्ला ने कहा कि आचार्यश्री जैसे संत मार्गदर्शक की भूमिका में होते हैं जो ना केवल अपना कल्याण करते हैं, बल्कि समाज को भी एक सही रास्ता बताते हैं। विधायक कैलाश कुशवाह ने आचार्यश्री को सच्ची भावांजलि यही होगी कि हम उनकी याद में एक वृक्ष का रोपण, संरक्षण और संवर्धन करें। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से राजेश भार्गव ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब-जब भी धर्म की हानि होती है तब संतों का अवतरण होता है। आचार्यश्री कहते थे कि हमें इंडिया नहीं, बल्कि भारत कहना है और आज उनकी बात को पूरे देश ने माना है। वेटरन संगठन से चंद्रप्रकाश शर्मा ने समझाइश दी कि आचार्यश्री को सच्ची भावांजलि यही होगी कि जैन और अजैन धर्मावलंबी उनके दिए गए संस्कारों को ना भूलें। लेकिन दुख की बात यह है कि आज भी बहुत से जैन रात्रि भोजन करते हैं। धर्मसभा में एसडीएम अनूप श्रीवास्तव, जनपद पंचायत अध्यक्ष रघुवीर रावत, नपा नेता प्रतिपक्ष शशि शर्मा, मंगलम सचिव राजेन्द्र मजेजी, विश्व हिन्दू परिषद के नरेश ओझा आदि ने भी अपनी भावांजलि प्रस्तुत की। कार्यक्रम के अंत में सामूहिक आरती उतारी गई और अर्ध समर्पण के साथ विनयांजलि सभा का समापन हुआ। आयोजन के दौरान सभी जिनालयों के अध्यक्ष, पदाधिकारी और सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का स्तरीय संचालक संजीव बांझल ने किया। जिन्होंने आचार्यश्री के एक-एक गुणों को स्पष्ट करते हुए कहा कि पंचम काल में उन्होंने भगवान महावीर जैसी कठोर तपस्या कर जिनशासन की प्रभावना बढ़ाने का कार्य किया है।

आचार्यश्री की स्मृति में जेल में खुलेगी हथकरघा यूनिट

आचार्य विद्यासागर जी के सम्मान में आयोजित विनयांजलि सभा में छत्री जैन मंदिर ट्रस्ट कमेटी के अध्यक्ष राजकुमार जैन जड़ीबूटी वालों ने बताया कि आचार्यश्री की स्मृति में जैन समाज जेल में एक हथकरघा यूनिट खोलेगा ताकि कैदियों को रोजगार मिल सके। इससे जैन समाज चरखे के माध्यम से बनने वाले खादी के अहिंसक वस्त्र तैयार करने में मुख्य भूमिका अदा करेगा। इससे जहां लोगों को रोजगार मिलेगा वहीं अहिंसा धर्म का भी प्रचार और प्रसार होगा। उन्होंने प्रशासन से अनुरोध किया कि यदि अनुमति मिली तो हम कल से ही इस यूनिट को प्रारंभ कर देंगे। विनयांजलि सभा में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में राजकुमार जैन जड़ीबूटी वालों ने बताया कि आचार्यश्री का पुण्य इतना प्रबल था कि उनके परिवार में सिर्फ सात सदस्य हैं और सातों सदस्यों ने जैन दीक्षा ली है।

धर्म गुरूओं ने आचार्यश्री का किया गुणगान

विनयांजलि सभा में शहर काजी बलीउद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि अहिंसा और सत्य का संदेश देने वाले आचार्य विद्यासागर जी को विस्मृत नहीं किया जा सकता। वह सदैव हमारे दिलों में रहेंगे। उन्होंने समूची मानवता को मोहब्बत का पैगाम दिया है। जीवन ज्योति चर्च के फादर जॉर्ज ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्यश्री जैसी महान आत्माओं का अवतरण कभी-कभी इस पृथ्वी पर होता है और उनके अवतरण से पृथ्वी धन्य होती है। उनका दिया गया एक-एक संदेश मानवता के लिए बहुत उपयोगी है। सिख धर्म के प्रमुख टीटू बत्रा ने कहा कि हमारे धर्म में तो गुरुओं को सर्वोपरि माना है। उन्हें भगवान का दर्जा दिया है। वर्तमान में आचार्य विद्यासागर जी जैसा बड़ा गुरू कोई नहीं है। मंशापूर्ण हनुमान मंदिर के प्रमुख पंडित अरुण महाराज ने कहा कि संत समागम और हरि कथा बहुत दुर्लभ है। आचार्य विद्यासागर जी महाराज जैन जगत के शिरोमणि हैं। विश्व आध्यात्मिक संस्थान के डॉ. रघुवीर सिंह गौर ने अपने बौद्धिक और हार्दिक उद्बोधन में कहा कि आचार्य विद्यासागर जी यथा नाम तथा गुण के धनी थे। विद्या का अर्थ है कि जो हमें अविद्या से मुक्त करे और वह विद्या के सागर थे।

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