समाज स्वीकार्य बच्चों के बलात्कार का नाम है बाल विवाह
शिवपुरी। बलात्कार की खिलाफत करने वाला समाज बाल विवाह पर मूक दर्शक बन जाता है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। बाल विवाह भी बलात्कार का एक रूप है, बस फर्क इतना है कि इसे समाज द्वारा बुरा नहीं माना जाता। बाल विवाह बलात्कार से भी बदतर स्थिति है। इसमें केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक बलात्कार भी होता है। इस क्रूरतम हिंसा के लिए सुरक्षा के लिये जवाबदेह व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता प्रशिक्षण केंद्र पर बाल विवाह को इस नई परिभाषा में परिभाषित करते हुए बाल संरक्षण अधिकारी राघवेन्द्र शर्मा ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से कहा कि अपने आसपास होने वाले हर विवाह आयोजन पर नजर रखें ताकि कोई बाल विवाह संपन्न न होने पाये। हम सबको मिलकर बाल विवाह नामक बुराई को समाज से मिटाना होगा। यह केवल सामाजिक बुराई ही नहीं, बल्कि एक कानूनी अपराध भी है। बाल विवाह बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास में एक बड़ा अवरोध है। यह सामाजिक विकास को भी प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि बाल विवाह सामाजिक कुरीति या कानूनी अपराध मात्र नहीं है। यह लैंगिक समानता, मौलिक अधिकार एवं समानता का भी मुद्दा है। यह किशोर किशोरियों के मानव अधिकारों से जुड़ा विषय है। बाल देखभाल और सुरक्षा कानून में बाल विवाह को बच्चों के साथ क्रूरता माना गया है तथा इसके लिये बाल विवाह निषेध कानून से अधिक सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। बाल विवाह बच्चों के यौन शोषण का समाज स्वीकार्य स्वरूप है। यह बलात्कार का सबसे भयावह रूप है। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में बाल विवाह को शून्यकरणीय योग्य माना गया है। अवयस्कता में होने वाले विवाह की वैधता को बालक-बालिका के विकल्प पर न्यायालय शून्य घोषित किया जा सकता है। पीडि़त यदि अपना बाल विवाह रद्द करना चाहे तो वह कलेक्टर (बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी) महिला एवं बाल विकास अधिकारी या जिला विधिक सहायता अधिकारी को अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।
यहां दे सकेंगे सूचना
कोई भी व्यक्ति जिसके संज्ञान में बाल विवाह आयोजन की जानकारी है। वह सम्बंधित क्षेत्र के एसडीएम, बाल विकास परियोजना अधिकारी, बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण अधिकारी या स्थानीय थाना प्रभारी को सूचना दे सकता है। इसके अलावा चाइल्ड लाइन नं.1098 या पुलिस को 100 नम्बर पर जानकारी दे सकता है।प्रशिक्षण कार्यक्रम में आंगनबाड़ी ट्रेनिंग सेंटर की सहायक निर्देशिका माया मिश्रा एवं कमलेश शर्मा मौजूद थीं।
जानकारी को छुपाने पर भी 2 साल की सजा
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनयम 2006 में बाल विवाह के आयोजन करने वाले, उसमें किसी भी प्रकार का सहयोग करने वाले तथा जानकारी होने के बाद भी जानकारी छुपाने वालों के लिये 2 वर्ष की सजा एवं एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। संसोधित किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 में बाल विवाह को ब'चों के साथ गम्भीर किस्म की क्रूरता मानते हुए तीन साल तक की सजा एवं एक लाख रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

