लंबे समय बाद सिंधिया राजपरिवार की संयुक्त ताकत एक साथ

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ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों को जिताने की कमान क्या भाजपा सौंपेंगी सिंधिया को
शिवपुरी। ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में मुकाबला सिंधिया वर्सेस कांग्रेस का माना जा रहा है। भाजपा की ओर से कमान कांग्रेस से पार्टी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपे जाने के आसार हैं। उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया जो कि शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं, उन्हें भी 16 सीटों में से तीन सीटों करैरा, पोहरी और बमौरी का प्रभारी बनाया गया है। कांग्रेस को उपचुनाव में सिंधिया राजपरिवार की संयुक्त ताकत से मुकाबला करना होगा। 1971 के बाद पहली बार सिंधिया राजपरिवार के दोनों ध्रुव भाजपा में हैं। इस कारण ग्वलियर चंबल संभाग में भाजपा ने सिंधिया को फ्री हैंड दिया है और उन्हें रणनीति बनाने और उसके क्रियान्वयन का जिम्मा सौंपा गया है। भाजपा ने उनकी सलाह पर कांग्रेस से भाजपा में आए 8 पूर्व विधायकों को मंत्री बनाया। इन मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर कांग्रेस को विजय हांसिल हुई थी और इसका श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिया गया था। आगामी विधानसभा उपचुनाव में भी इसी कारण सिंधिया की प्रतिष्ठा दाव पर है। बल्कि उनसे अधिक सिंधिया राजपरिवार की क्योंकि यशोधरा राजे सिंधिया भी भाजपा में हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में संभाग में भाजपा के स्टार प्रचारक भले ही शिवराज सिंह चौहान रहे हों लेकिन इस बार तो उपचुनाव में सिंधियाज पर पूरा दारोमदार है। 
2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाले हुए थे। जिसके परिणम स्वरूप संभाग की 34 सीटों में से 26 पर कांग्रेस ने विजयश्री प्राप्त की थी और ग्वालियर चंबल संभाग की आश्चर्यजनक सफलता के कारण ही कांग्रेस को प्रदेश में सत्ता में आने में सहायता मिली थी। इन सीटों पर विजय का श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया के खाते में था और इन सीटों पर जीते विधायकों में से अधिकांश सिंधिया समर्थक थे। सिर्फ सुमावली के विधायक ऐदल सिंह कंसाना सिंधिया खैमे से जुड़े न होकर दिग्विजय सिंह के समर्थक थे। मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कथित कार्यप्रणाली से नाराज होकर सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और उनके समर्थन में प्रदेश के 22 कांग्रेस विधायक भी कांग्रेस और विधायकी छोड़कर भाजपा में आ गए। जिससे प्रदेश में सत्ता पलट गई और भाजपा प्रदेश में काबिज हो गई। इन 22 कांग्रेस विधायकों में से 15 विधायक ग्वालियर चंबल संभाग के हैं। जौरा के सिंधिया समर्थक विधायक बनवारीलाल शर्मा के आसामायिक निधन के कारण यहां भी चुनाव हो रहे हैं। डेढ़ साल पहले जिन सीटों पर कांग्रेस की विजय हुई थी, उन सीटों पर भाजपा को कैसे विजय दिलाई जाए यह भाजपा नेतृत्व के लिए एक बड़ा सवाल है और सृूत्रों के अनुसार भाजपा ने इन सीटों को जिताने की जिम्मेदारी कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपी है। इनके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ शिवपुरी विधायक और प्रदेश सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को भी करैरा, पोहरी और बमौरी की जिम्मेदारी संभालने का दायित्व दिया गया है। यशोधरा राजे का करैरा, पोहरी, बमौरी, मुंगावली और अशोकनगर सीटों पर अच्छा प्रभाव है। सिंधिया की सलाह पर भाजपा ने ग्वालियर चंबल संभाग के 8 पूर्व विधायकों को मंत्री बनाया है। इनमें ऐदल सिंह कंषाना भी हैं। मंत्री बनने वालों में प्रथम बार के विधायक ओपीएस भदौरिया, सुरेश राठखेड़ा और गिर्राज दंडौतिया भी शामिल है। प्रदेश मंत्रिमंडल में सिंधिया के वर्चस्व को इससे समझा जा सकता है कि भाजपा के किसी भी एक बार के विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया है। मंत्री बनने वालों में प्रधुम्र सिंह तोमर, ईमरती देवी, ऐदल सिंह कंषाना, महेंद्र सिसौदिया, गिर्राज दंडौतिया, सुरेश राठखेड़ा, ब्रजेंद्र यादव, ओपीएस भदौरिया शामिल हैं। इन्हें उपचुनाव जीतने की रणनीति के तहत ही मंत्री बनाया गया है। इन 16 विधानसभा सीटों पर जीत का श्रेय जहां सिंधिया के खाते में जाएगा। वहीं हार की जिम्मेदारी भी उन्हे वहन करनी पड़ेगी। वर्तमान में इन विधानसभा क्षेत्रों में जो परिदृश्य नजर आ रहा है। उसमें डबरा और ग्वालियर दो सीटें ऐसी हैं जिन्हें जीतना भाजपा के लिए मुश्किल नजर नहीं आ रहा। डबरा और ग्वालियर क्रमंश: इमरती देवी और प्रधुम्र सिंह तोमर की सीटे हैं। इनके अलावा सुरक्षित समझे जाने वाली सीट पोहरी मानी जा सकती है। जहां सिंधिया ने सुरेश राठखेड़ा को मंत्री बनवाया है। सुरेश राठखेड़ा क्षेत्र में बहुसंख्यक धाकड़ जाति के हैं। जिसके विधानसभा क्षेत्र में 50 हजार के लगभग वोट हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी धाकड़ जाति से हैं और सिंधिया का प्रभाव भी धाकड़ मतदाताओं पर है। इसका सकारात्मक प्रभाव श्री राठखेड़ा की संभावनाओं पर निश्चित रूप से पड़ेगा। सुमावली में ऐदल सिंह कंषाना के जीतने की संभावना भी मानी जा सकती है। मुरैना सीट पर भी रघुराज कंषाना के लिए भी मुकाबला अधिक मुश्किल नहीं होगा। लेकिन भाजपा को सर्वाधिक दिक्कत अंबाह, गोहद, करैरा, जौरा और भांडेर क्षेत्र में निश्चित रूप से महसूस होगी। यहां के पूर्व विधायकों ने अपनी छवि के कारण चुनाव मुश्किल बना लिया है। ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल भी संघर्षपूर्ण स्थिति में हैं। अशोकनगर में जजपाल जज्जी की भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है। अभी फिलहाल चुनाव होने में दो माह से अधिक समय है। कांग्रेस और भाजपा की इस लड़ाई में फिलहाल भाजपा ने किंचित बढ़त बना रखी है। बढ़त बनाने का सबसे प्रमुख कारण यह है कि भाजपा का सत्ता में बने रहना तय माना जा रहा है। क्यों कि 22 सीटों में से 9 जीतना उसके लिए अधिक मुश्किल नहीं होगा। दूसरे इन सीटों पर अच्छा प्रभाव रखने वाले ज्योतिरादित्य ङ्क्षसंधिया भाजपा की ओर से मोर्चा संभालेंगे। यशोधरा राजे का प्रभाव भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। परंतु इसके बाद भी यह कहना मुश्किल है कि भाजपा के लिए मुकाबला आसान होगा। 
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