सतनवाड़ा एवं नरवर ग्रामीण मंडल ने मनाया डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस
नरवर (गणेश प्रसाद चीता)। नरवर एवं सतनवाड़ा ग्रामीण मंडल द्वारा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर वृक्षारोपण किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि पूर्व विधायक पोहरी प्रहलाद भारती ने उनकी जीवन परिचय पर कहा कि आज हम एक ऐसे महापुरुष का स्मरण करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए जीवन पर्यंत काम किया और अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान भी दिया।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम जब सामने आता है तो हमें भारत में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान के नारे को बुलंद करता हुआ भारत माता का युद्ध दिखाई देता है। आज हम एक ऐसे महापुरुष का स्मरण कर रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस की नेहरू सरकार की तुष्टीकरण की नीति के विरोध में ना सिर्फ मंत्री पद का त्याग किया, बल्कि कश्मीर के भारत में संपूर्ण ब्लैक लिए जिन्ना की जेल में शहीद हो गए। डॉक्टर मुखर्जी का जन्म कोलकाता के एक अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था उनके पिता आशुतोष मुखर्जी विख्यात शिक्षाविद थे उन्होंने 1923 में लॉ की उपाधि प्राप्त की और 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे उनकी प्रतिमा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे मात्र 34 वर्ष की आयु में प्रतिष्ठित कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी श्रेष्ठ शिक्षक होने के नाते अपने जीवन को अभिजात तरीके से जी सकते थे, लेकिन भारत का जो चित्र उनके सामने था उसने उन्हें कठिन कर्तव्य पथ की ओर अग्रसर किया। अपने राष्ट्रवादी विचारों और अखंड भारत के प्रबल पक्षधर होने के कारण वे कांग्रेसी नेताओं की आंख में खटकती रहे। डॉक्टर मुखर्जी को जब यह समझ आया कि इस सरकार में रहते राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता तो उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ का जन्म हुआ। दल के जन्म के साथ ही डॉक्टर मुखर्जी ने धारा 370 को समाप्त करने की जोरदार बकालात करते हुए जम्मू में एक विराट रैली का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि एक विधान, एक प्रधान और एक निशान के लिए मैं अपना बलिदान भी दे दूंगा।


