जौरा और आगर सीट के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने कसी कमर
अशोक कोचेटा
मध्यप्रदेश की विधानसभा में भले ही कांगे्रस सत्तारूढ़ पार्टी है। लेकिन वह बहुत क्षीण बहुमत से सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सत्ता में बनी हुई है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 230 में से 114 सीटें मिली थी। जबकि भाजपा के खाते में 109 सीटें गई थीं। ऐसी स्थिति में सपा के एक, बसपा के दो और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने सरकार बना ली थी। झाबुआ सीट पर हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया की जीत से कांग्रेस ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर 115 कर ली थी। जबकि भाजपा 108 सीटों पर आ गई थी। लेकिन अब जौरा के कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा और आगर के भाजपा विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की एक-एक सीटें कम हो गई हैं। ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस सरकार की स्थिरता अब जौरा और आलोट विधानसभा उपचुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगी।
जौरा और आगर विधानसभा के चुनाव को जीतने के लिए दोनों दलों ने जोरदार तैयारियां शुरू कर दी हैं। दोनों सीटों के चुनाव मार्च के अंतिम सप्ताह या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में होने की उम्मीद है। जहां तक जौरा विधानसभा सीट का सवाल है, इस सीट को जीतने के लिए कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस विधायक बनवारीलाल शर्मा चुनाव जीते थे। इस सीट से बनवारीलाल शर्मा ने 15 हजार से अधिक मतों से विजयी प्राप्त की थी। जौरा सीट पर पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का अच्छा प्रभाव है और स्व. बनवारीलाल शर्मा उनके समर्थक विधायक माने जाते थे। इसलिए इस सीट को जिताने का पूरा दारोमदार ज्योतिरादित्य सिंधिया का रहेगा। यहां से कांगे्रेस का उम्मीदवार कौन होगा। इसको लेकर भी सिंधिया की राय काफी महत्वपूर्ण रहेगी। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस इस सीट पर सहानुभूति लहर का लाभ उठाने के लिए स्व. बनवारीलाल शर्मा के किसी परिजन को टिकिट दे सकती है। सूत्रों का यह भी कथन है कि कांग्रेस जौरा विधानसभा सीट को जिताने की जिम्मेदारी सिंधिया को सौंपने की तैयारी में हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है, इस सीट को जीतना उसके लिए भी काफी प्रतिष्ठा की बात होगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जौरा विधानसभा क्षेत्र से न केवल पराजित हुई थी। बल्कि उसके स्थान पर बसपा उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहा था। भाजपा उम्मीदवार से कांग्रेस की जीत का अंतर लगभग 19 हजार मतों का रहा था। जौरा विधानसभा सीट को जिताने की जिम्मेदारी भाजपा अपने केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सौंप सकती है। श्री तोमर मुरैना संसदीय क्षेत्र से 2014 के लोकसभा चुनाव में विजयी हुए थे और जौरा सीट मुरैना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इस विधानसभा सीट पर सिंधिया वर्सेस तोमर की जोरदार टकराहट देखने को मिल सकती है। कांग्रेस में सिंधिया का राजनैतिक भविष्य भी इस सीट के परिणाम पर निर्भर करेगा। कांग्रेस में अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे सिंधिया को इस सीट पर हार से नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं जौरा में कांग्रेस की जीत सिंधिया को राजनैतिक रूप से मजबूत करने वाली साबित होगी। जहां तक आगर विधानसभा सीट का सवाल है 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा उम्मीदवार मनोहर ऊंटवाल लगभग 2500 मतों से कांग्रेस उम्मीवार विपिन वानखेड़े से जीते थे। जबकि भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से 28 हजार 859 मतों की जीत हांसिल की थी। इस मायने में 2018 की भाजपा की जीत काफी संकीण मानी जा सकती है। आगर मालवा सीट को जीतने की जिम्मेदारी कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सुपुत्र और प्रदेश सरकार क केबिनेट मंत्री जयवर्धन सिंह को सौंप सकती है। वहीं भाजपा केन्द्रीय मंत्री थावरचंद्र गहलौत को जिम्मेदारी सौंपने का मन बना रही है। भाजपा के लिए आगर मालवा की सीट बचाना बड़ी चुनौती होगी। कुल मिलाकर जौरा और आगर मालवा सीट पर जीत से न केवल कांग्रेस अपने दम पर विधानसभा में पूर्ण बहुमत जुटाने में सफल रहेगी बल्कि इससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। देखना यह है कि झाबुआ चुनाव के बाद कांग्रेस का विजय रथ आगर मालवा के साथ-साथ जौरा में भी आगे बढ़ेगा।


