लगातार दूसरी बार अलग-अलग दलों से जीतकर सुरेश राठखेड़ा ने बनाया नया रिकॉर्ड

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राठखेड़ा और जसमंत दोनों ही 2018 में जीते थे चुनाव

राठखेड़ा ने जहां अपनी जीत का अंतर ढ़ाई गुना से अधिक किया

जसमंत जितने मतों से जीते थे उससे दुगने से अधिक मतों से हो गए पराजित 


शिवपुरी।
प्रदेश के 25 कांग्रेस विधायकों के पार्टी और विधायक पद से इस्तीफा देने वालों में शिवपुरी जिले के पोहरी और करैरा के कांग्रेस विधायक भी थे। दोनों कांग्रेस विधायकों में करैरा विधायक जसमंत जाटव ने 2018 में पोहरी के कांग्रेस विधायक सुरेश राठखेड़ा से अधिक मतों से जीत हांसिल की थी। लेकिन उपचुनाव में सुरेश राठखेड़ा ने जहां अपनी जीत का अंतर ढ़ाई गुने से अधिक मतों से बढ़ा लिया। वहीं करैरा के जसमंत जाटव 2018 में मिली अपनी जीत से दुगने से भी अधिक मतों से पराजित हो गए। उपचुनाव में पोहरी के भाजपा विधायक सुरेश राठखेड़ा  ने लगातार दो चुनावों में अलग- अलग दलों से जीतकर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। अभी तक एक ही दल से  लगातार दो चुनावों में जीतने वालों में केवल पूर्व विधायक प्रहलाद भारती का ही नाम था। लेकिन सुरेश राठखेड़ा ने 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में और इसके बाद 2020 में हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप  में जीत हांसिल करने में सफलता प्राप्त की। 2018 में वह 8 हजार मतों से जीते थे। लेकिन इस चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़कर 22 हजार मत हो गया। उन्होंने 2018 में भाजपा प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर धकेला था। वहीं 2020 में उन्होंने कांगे्रस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर ला खड़ा किया। 

लेकिन करैरा के पराजित भाजपा प्रत्याशी जसमंत जाटव 2018 की अपनी लय को कायम नहीं रख  पाए। 2018 में वह कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में 14 हजार मतों से चुनाव जीते थे। लेकिन 2020 के चुनाव मेें वह भाजपा प्रत्याशी के रूप में 31 हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गए। पोहरी में भाजपा प्रत्याशी की जीत और करैरा में भाजपा प्रत्याशी की हार का कारण जातीय समीकरण रहे। पोहरी में किरार मतदाताओं का बाहुलय है और किरार मतदाताओं की संख्या 40 हजार से अधिक है। भाजपा के किरार उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को इसका फायदा मिला। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  भी किरार जाति के हैं। जिन्होंने सुरेश राठखेड़ा की जीत के लिए खूब पसीना बहाया। उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह भी सुरेश राठखेड़ा की जीत के लिए पर्दे के पीछे से प्रचार में जुटी। जिसका कारण यह हुआ कि किरार मतदाताओं का 80 से 90 प्रतिशत धु्रवीकरण भाजपा प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा के पक्ष में हुआ। जिसके चलते उनकी जीत का अंतर 8 हजार मतों से बढ़कर 22 हजार मत तक पहुंच गया। वह 2018 में कांग्रेस टिकट पर विजयी हुए थे। उस चुनाव में भाजपा  ने भी किरार उम्मीदवार मैदान में उतारा था। जिसके कारण किरार मतों का बंटवारा होने से श्री राठखेड़ा जीत तो गए लेकिन उनकी जीत का अंतर 8 हजार मतों तक सीमित रहा। स्पष्ट है कि सुरेश राठखेडा़ की भारी जीत में जातीय समीकरण की प्रमुख भूमिका रही। जबकि करैरा के भाजपा प्रत्याशी जसमंत जाटव जातीय समीकरण की प्रतिकूलता के चलते पराजित हो गए। वह जाटव जाति के हैं और कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी ने भी जाटव उम्मीदवार को टिकट दिया था। करैरा में 45 हजार जाटव मतदाता हैं। जाटव मतदाताओं पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रागीलाल जाटव की मजबूत पकड़ हैं और 2008 से लेकर 2018 तक तीन विधानसभा चुनाव में वह बसपा प्रत्याशी के  रूप में जाटव मतदाताआं के चलते 40 हजार मत लाते रहे हें। इसे पहचान  कर कोंग्रेस ने प्रागीलाल जाटव को फोड़कर उन्हें कांगे्रस से टिकट दिया। जिसके चलते जाटव मतों का धु्रवीकरण पूरी तरह से प्रागीलाल जाटव के पक्ष में हुआ और न तो भाजपा प्रत्याशी जसमंत जाटव और न ही बसपा प्रत्याशी राजेंद्र जाटव सजातीय मतों का धु्रवीकरण नहीं कर सके। पिछले तीन चुनावों से बसपा करैरा मेें 40 हजार मत प्राप्त करती रही है। लेकिन इस बार बसपा प्रत्याशी को 5 हजार मत भी नहीं मिल पाए और जातीय समीकरण के चलते प्रागीलाल 31 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीत गए। कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक आदिवासी, दलित आदि पर भी उन्होंने कब्जा किया और जसमंत जाटव से नाराज मतदाताओं को भी वह अपने पक्ष में लाने में सफल रहे। 

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