अब तक कुल 296 मरीजों को पहुंचाया अस्पताल व घर
बैराड़ (धीरज ओझा)। कोरोना काल में जहां चिकित्सक कोरोना योद्धा बनकर उभरे हैं वहीं 108 एंबुलेंस सेवा और एडवांस लाइफ सपोर्ट सेवा एंबुलेंस के कर्मचारी किसी से पीछे नहीं है यह योद्धा सुबह घर से निकलने के बाद ना तो समय देखते हैं और ना ही इनके खाने पीने का कोई समय है इतना ही नहीं यहां लोग 12-12 घंटे तक की ड्यूटी कर रहे हैं इसके बाद भी बिना किसी से शिकायत करें अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं रात हो या दिन सूचना मिलने पर तत्काल कोरोना के मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने में जुट जाते हैं बैराड़ में 108 एंबुलेंस एमपी 02 एवी 7226 मरीजों को निशुल्क सेवाएं दे रही है जनवरी में थोड़ी स्थिति ठीक थी लेकिन अप्रैल और मई के माह में अभी तक की बात करें तो यहां कर्मचारी 150 करोना संक्रमित मरीजों को घर से अस्पताल और अस्पताल से घर तक पहुंचा चुके हैं बैराड़ नगर की एंबुलेंस को कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए लगाया गया था यहां बात करें तो अप्रैल मई से लेकर अभी तक कुल 296 मरीजों को शिफ्ट किया गया है जिनमें 150 केस कोरोना सस्पेक्टेड व पॉजिटिव केस जिनको बैराड़ अस्पताल, शिवपुरी हॉस्पीटल, मेडिकल कॉलेज, प्राइवेट हॉस्पिटलस में शिफ्ट कराया व लाया साथ ही अन्य 146 केस डिलेवरी व मेडिकल के है जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अप्रैल माह की स्थिति क्या थी। इतनी विषम परिस्थिति में परिवार को छोड़कर पीपीई किट को पहनकर दिन रात 108 एंबुलेंस के कर्मचारियों ने सेवा दी है
पलंग मिलना चिनौती, रात को नहीं आती थी नींद
108 एंबुलेंस के चालक अजीत शर्मा ने बताया कि अप्रैल माह में यह स्थिति थी कि जिस भी अस्पताल में मरीजों को लेकर पहुंचते थे वहां पलंग उपलब्ध नहीं होता था मरीजों को भर्ती कराने को लेकर कई अस्पतालों में भटकना पड़ता था मरीजों को एंबुलेंस में लेकर इस अस्पताल से उस अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते थे फोन पर लगातार संपर्को व अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद मरीजों को भर्ती करा पाते थे। रात्रि में पीपीई किट के कारण नींद नही आती थी। इतना ही नही रास्ते मे एम्बुलेंस में खाने पीने के लिए कुछ नही मिलता था।
हर बार बदलना पड़ती थी किट
108 एम्बुलेंस के ईमटी दीपक शाक्य ने बताया कि मरीजों को शिफ्ट करते समय सबसे बड़ी परेशानी पीपीई किट थी क्योंकि मरीज को जब तक भर्ती नहीं करा देते तब तक पीपीई किट में ही रहना पड़ता था रात को कब किस समय फोन आ जाए पता नही जिस कारण पूरी रात नींद भी नहीं आती थी उनका अधिकांश समय फील्ड में ही निकल जाया करता था हर समय बस मन में यही चलता रहता था कि कहीं कोई मरीज एंबुलेंस के लिए परेशान ना हो ।




