शिवपुरी। एक शताब्दी से ज्यादा समय से यदि हम प्रेमचंद को स्मरण कर रहे हैं तो निश्चित ही उनका साहित्य विशिष्ट होगा।यह विशेषता थी,उनके साहित्य का जनोन्मुखी होना। प्रेमचंद जन के कथाकार थे,उन्होंने समय की नब्ज को टटोला था। इसीलिए वे अपने समय मे भी प्रासंगिक थे और आज भी प्रासंगिक हैं । भार्गव ने प्रेमचंद की अपेक्षाकृत कम चर्चित कहानी मुक्तिधन का आंशिक समालोचनात्मक पाठ करते हुए अपनी बात कही। मध्यप्रदेश लेखक संघ शिवपुरी द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह में उक्त उद्गार वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार प्रमोद भार्गव ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये।कार्यक्रम की अध्यक्षता वयोवृद्ध साहित्यकार यूसुफ अहमद कुरैशी ने की। श्री भार्गव ने प्रेमचंद की कहानी मुक्तिधन की सूक्ष्म व्याख्या करते हुए इसमें निहित सौन्दर्य को उद्घाटित किया।
श्री भार्गव ने कहा कि सामाजिक समरसता के संवर्धन में उपयोगी प्रेमचंद की ऐसी कहानियों को पाठ्यक्रम में पढ़ाई जानी चाहिए। इस कहानी में हिन्दू और मुस्लिम धर्म से जुड़े मुख्य पात्र एक दूसरे के धर्म की पालना में ऐसा अनूठा आदर्श प्रस्तुत करते हैं कि कथित वर्ग संघर्ष की उकेरी गेन दरारों की भरपाई हो जाती है। संस्था के अध्यक्ष डॉ लखनलाल खरे ने कहा कि किसी रचनाकार का समग्र और परिणाम मूलक मूल्यांकन उसकी समग्र रचनाओं के गहन अध्ययन के बिना सम्भव नहीं है।पाठ्यक्रम में शामिल प्रेमचंद की दो चार कहानियों या एक दो उपन्यासों को पढ़कर प्रेमचंद को नही समझा जा सकता।विनय प्रकाश जैन नीरव ने प्रेमचंद के साहित्य में वर्णित नगर व ग्राम के संघर्ष को सदाहरण निरुपित किया।अजय जैन अविराम, शकील नश्तर,इशरत ग्वालियरी, विवेक वाजपेयी, बसंत श्रीवास्तव, त्रिलोचन जोशी,ब्रजेश अग्निहोत्री, व अन्य वक्ताओं ने भी प्रेमचंद के प्रति अपने शब्द सुमन किए। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री यूसुफ अहमद कुरेशी ने कहा कि प्रेमचंद को उर्दू के अलावा अंग्रेजी,संस्कृत तथा हिंदी का अच्छा ज्ञान था। वे चाहते तो हिंदी में अच्छा लिख सकते थे।परंतु उन्होंने लेखन के लिए उस भाषा का प्रयोग किया,जो आम जन की भाषा थी। इसी सहज भाषा में लेखन के कारण उनका साहित्य पठनीय, महत्वपूर्ण और कालजयी बना। संचालन संघ के उपाध्यक्ष डॉ मुकेश अनुरागी व सहसचिव राजकुमार चौहान भारती ने किया। कार्यक्रम का दिनेश वशिष्ठ ने आभार प्रदर्शन किया।


