जहाँ से उभर कर किनारे लगा था, वहीं डूब जाने को जी चाहता है : मोहम्मद याकूब साबिर

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बज़्म-ए-उर्दू की मासिक नशिस्त में झलका अदबी रंग, शेर-ओ-शायरी से महका दुर्गा मठ

शिवपुरी। शहर की प्रतिष्ठित अदबी संस्था बज़्म-ए-उर्दू की मासिक नशिस्त मंगलवार शाम पुरानी शिवपुरी स्थित दुर्गा मठ में आयोजित की गई, जिसमें शहर के नामचीन कवि और शायरों ने शिरकत की। इस नशिस्त की अध्यक्षता सुविख्यात गज़़लकार इशरत ग्वालियरी ने की।

कार्यक्रम की शुरुआत कवि संजय शाक्य ने अपने शेर से की- गर्दिशों में हैं सितारे आजकल, कट रहे हैं दिन हमारे आजकल। उनके बाद कवि राधेश्याम सोनी 'परदेशीÓ ने अपनी गज़़ल पेश की- सजाएं खूब मिली दिल लगाने की, वो क्या फिरे फिर गई नजऱें ज़माने की। प्रसिद्ध चिकित्सक और शायर डॉ. निसार अहमद ने कहा कि दाग़ चेहरे के तुझे कैसे नजऱ आते निसार, आईना गौर से तूने कभी देखा ही नहीं। कवियित्री कल्पना सिनोरिया ने अपनी रचना से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए कहा कि किसी के घर का सूरज हो, दिया हो या कि फिर जुगनू, किसी जलते मुनव्वर को बुझाएं हम भला कैसे। वहीं भगवान सिंह यादव ने समाज की पीड़ा को शब्द देते हुए कहा कि भगवान मसीहा बन कष्टों को हर, हल्कान जनों के। कार्यक्रम में रफीक इशरत ग्वालियरी, रामकृष्ण मौर्य मयंक, मोहम्मद याकूब साबिर, शिवकुमार राय अर्जुन, निर्मल राठौर, सलीम बदल, राजकुमार चौहान एवं प्रदीप अवस्थी जैसे शायरों ने भी अपनी-अपनी बेहतरीन गज़़लें और नज़्में पेश कीं। कार्यक्रम के समापन पर अध्यक्ष इशरत ग्वालियरी ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और अगली नशिस्त की घोषणा की। उन्होंने बताया कि अगली नशिस्त अगले माह के पहले रविवार को आयोजित होगी, जिसमें सभी शायरों को दिए गए मिसरे- बे सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है? पर अपनी गजलें प्रस्तुत करनी होंगी। बज़्म-ए-उर्दू की यह महफिल उर्दू अदब की खुशबू से सराबोर रही, जहाँ हर शेर ने दिलों को छू लिया और हर गजल ने महफिल में नई रौनक भर दी।

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