शिवपुरी। शहर के बाल्य एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील गौतम के द्वारा एक छोटी सी कविता लिखी गई जिसमें उन्होंने पूरे देश में आई विपदा के कारण मजदूरों और श्रमिकों को जो परेशानी का सामना करना पड़ रहा है उस पर उन्होंने मजदूरों का दुःख और संवेदनाएं प्रकट की है।
मैं मजदूर हूं
मुझे मार पड़ी है।
पहले किस्मत की,अब पुलिस की
यकीन नहीं तो देख लें
मेरी नंगी पीठ, डंडे के निशान
और पैरों के छाले
पैदल ही चला हूं कोसों
सड़क, पगडंडी और नाले
अब धैर्य टूट रहा है
गला सूख रहा है
डबडबाती आंखें
चिलचिलाती धूप
और कब तक सहूंगा, जोरों की भूख
अब मैं मजबूर हूं
मुझे मार पड़ी है।
लेखक - डॉ. सुनील गौतम
बाल्य एवं शिशु रोग विशेषज्ञ
मैं मजदूर हूं
मुझे मार पड़ी है।
पहले किस्मत की,अब पुलिस की
यकीन नहीं तो देख लें
मेरी नंगी पीठ, डंडे के निशान
और पैरों के छाले
पैदल ही चला हूं कोसों
सड़क, पगडंडी और नाले
अब धैर्य टूट रहा है
गला सूख रहा है
डबडबाती आंखें
चिलचिलाती धूप
और कब तक सहूंगा, जोरों की भूख
अब मैं मजबूर हूं
मुझे मार पड़ी है।
लेखक - डॉ. सुनील गौतम
बाल्य एवं शिशु रोग विशेषज्ञ


