राजनेताओं से रहे अच्छे संबंध लेकिन भाषा समस्या के कारण जन-जन से नहीं स्थापित कर पाई संवाद
शिवपुरी। 20 माह पहले शिवपुरी में पदस्थ हुई कलेक्टर अनुग्रह पी की उपचुनाव से पूर्व विदाई हो गयी। उनके कार्यकाल की एक मात्र उपलब्धि यही रही कि उन पर विवाद की कोई छाया नहीं पड़ी। सत्ताधारी दल के राजनैतिज्ञों से उनके रिश्ते अच्छे रहे। इस कारण वह उनकी भी आदर की पात्र बनी रहीं। आमजन से उनके रिश्ते सामान्य ही रहे। अपने अधीनस्थों पर उनका भरोसा हद से ज्यादा रहा। यही कारण रहा कि उनके कार्यकाल में कई अधिकारियों ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। निवर्तमान कलेक्टर अनुग्रह पी मूल रूप से यथास्थितिवादी हैं और उन्होंने चीजों को बदलने में कभी रूचि नहीं रखी। जो जैसा चल रहा है वह चलता रहे यहीं उनकी कार्यशैली रही। कुर्सी में बने रहने के लिए यह गुण निश्चित रूप से कारगर है। लेकिन जिले के मुखिया के रूप में जो अपेक्षा कलेक्टर से की जाती है उस लक्ष्य तक वह पहुंच नहीं पाईं। उनके कार्यकाल में किसी भी लंबित योजना का क्रियान्वयन नहीं हुआ और नगर पालिका के प्रशासक के रूप में भी वह अपनी कोई छाप छोडऩे में सफल नहीं रही।
2011 बैच की आईएएस अधिकारी श्रीमति अनुग्रह पी तमिलनाडु की रहने वाली हैं और शिवपुरी में उनकी पूर्ववर्ती कलेक्टर भी महिला थी। उन्होंने जनवरी 2019 मेें उनसे कलेक्टर का पदभार ग्रहण किया था। अनुग्रह पी इसके पहले अनुपपूर की कलेक्टर थीं। सूत्रों के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनुशंसा पर उन्हें शिवपुरी भेजा था। यहीं कारण है कि सिंधिया राजपरिवारों के दोनों धु्रवों से अनुग्रह पी के अच्छे रिश्ते थे। इसी कारण मार्च 2020 में भाजपा सरकार बनने के बाद भी वह शिवपुरी कलेक्टर के पद पर बनी रहीं। स्थानीय स्तर पर भी सिंधिया समर्थकों से उनके अच्छे रिश्ते रहे।
जनसुनवाई में आवेदकों के प्रति हमेशा रहीं संवेदनशील
अनुग्रह पी दक्षिण प्रांत की होने के कारण उन्हें हिंदी बोलने में कठिनाई महसूस होती थी और इसी कारण आमजन से उनके संवाद में कहीं न कहीं कमी अवश्य रही। लेकिन उनमें संवेदनशीलता की कमी थी यह नहीं कहा जा सकता। जनसुनवाई में जब कोई आवेदक समस्या लेकर उनके पास आता तो वह पूरी संवेदनशीलता से कोशिश करती थी कि उसकी समस्या का निराकरण करें। यह उनके व्यक्तित्व का सबसे उज्जवल पक्ष था।
एक भी योजना को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाईं
उनके कार्यकाल में शिवपुरी में समस्याओं का अंबार था। सिंध जलावर्धन योजना वर्ष 2009 से प्रारंभ हुई थी और अभी तक शिवपुरी के प्रत्येक घर मेें सिंध का पानी नहीं पहुंच पाया था। सीवेज प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन भी एक बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। फोरलेन वायपास जीर्णशीर्ण हालत में है और तय समय सीमा में उसका रिपेयरिंग अभी तक नहीं हो पाया है। जिस कारण शहर के मध्य से गुजरने वाले वायपास से होकर भारी वाहन निकल रहे हैं। जिससे हर समय दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। कलेक्टर अनुग्रह पी इनमें से किसी भी एक योजना को रूचि लेकर अंजाम तक नहीं पहुंचा पाईं। नगर पालिका अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कलेक्टर अनुग्रह पी को शिवपुरी नगर पालिका का प्रभारी बनाया गया। लेकिन अपने कार्यकाल में वह कोई ऐसी छाप नहीं छोड़ पाई जिसे याद रखा जाए। पूरे शहर में गंदगी का अंबार है और हजारों सुअर शहर को भयाकं्रात बनाए हुए हैं। शहर के मध्य से गुजरने वाली सड़क बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है और आए दिन खराब सड़कों के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं।
शांतिपूर्ण सेना भर्ती जिले में उनकी उपलब्धि रही
शिवपुरी में सेना भर्ती उनके कार्यकाल की उपलब्धि मानी जा सकती है। अभी तक सेना भर्ती में बाहर से आने वाले आवेदक बहुत धमाल मचाते थे और शहर की शांति व्यवस्था को ध्वस्त करते थे। लेकिन उन्होंने और पुलिस प्रशासन ने इस तरह से व्यवस्था की ताकि आवेदकों को शहर में घुसने का मौका ही नहीं मिला। आईएएस अनुग्रह पी शिवपुरी के स्थान पर अब खरगौन की कलेक्टर बनाई गई हैं। जिससे स्पष्ट है कि सत्ताधारी दल का उनके प्रति विश्वास कम नहीं हुआ है।
उनके कार्यकाल में अधिकारियों की रही पोबारह
एक कलेक्टर के रूप में उन पर दृष्टिपात श्रीमति अनुग्रह पी नहीं कर पाईं। उनके कार्यकाल में अधिकारियों की अवश्य पोबारह रही। उन्होंने कई विवादित एसडीएम को पदस्थ किया। शिवपुरी के तत्कालीन एसडीएम अतेंद्र सिंह गुर्जर का कार्यकाल तो खासा खराब रहा। आमजन से वह आरोपियों जैसा व्यवहार करते थे और मध्यस्थों के जरिए सरकारी काम को अंजाम देते थे और मध्यस्थों पर लेन-देन के जमकर आरोप लगे। अतिक्रमण हटाने के नाम पर पूरे शहर में उन्होंने भय का वातावरण पैदा किया। उनके अभद्र व्यवहार के अनेक किस्से हैं और जिन्हें प्रमाणित होने के बाद भी हमेशा उनके बचाव में कलेक्टर अनुग्रह पी आती रहीं। उनका स्थानांतरण होने के बाद भी उन्हें रिलीव नहीं किया। बाद में जब यशोधरा राजे सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव में अनिच्छा से उन्हें रिलीव किया गया। यहीं कारण रहा कि वह अच्छी भावना के बावजूद भी जिले को एक अच्छा प्रशासन नहीं दे पाईं।


